शीतलधाम समवशरण मंदिर निर्माण कार्य प्रगति पर है।

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प्रातः स्मणीय आचार्य गुरुवर १०८ श्री विद्या सागर जी के आदेशानुसार मंदिर जी का निर्माण कार्य बहुत ही तेज़ी से चल रहा हैं | |
कृपया अपनी चंचला लक्ष्मी का सदुपयोग कर समवशरण मंदिर निर्माण हेतु मुक्तहस्त दान करें

भगवान शीतलनाथ जी

नवम तीर्थन्कर के निर्वाण के सुदीर्घ काल के पश्चात दसवे तीर्थकर श्री शीतलनाथ जी का जन्म हुआ । भदिदलपुर नरेश द्रढरथ एवम महारानी नन्दादेवी ने प्रभु के जनक -जननी होने का सौभाग्य पाया । माघ क्रष्ण द्वादशी …

भगवान आदिनाथ जी

विदिशा से 33 कि. मी. दूर बर्रो नाम के एक साधारण से गाँव में हल्कैया धोबी के घर स्वप्न देकर एवं उसके घर के निर्माण में बार बार दीवार गिरने पर जब उस जगह की खुदाई की गई तो एक विशाल प्रतिमा दिखाई दी ।

श्री विद्यासागर जी

वास्तव में ऐसे महापुरुष मानव जाति के प्रकाश पुंज हैं, जो मनुष्‍य को धर्म की प्रेरणा देकर उनके जीवन के अंधेरे को दूर करके उन्हें मोक्ष का मार्ग दिखाने का महान कार्य करते हैं। वास्तव में ये महान् आत्माएँ ही मानवता के जीवन मूल्यों का प्रतीक हैं।

जैन धर्म

जैन’ कहते हैं उन्हें, जो ‘जिन’ के अनुयायी हों। ‘जिन’ शब्द बना है ‘जि’ धातु से। ‘जि’ माने-जीतना। ‘जिन’ माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया, वे हैं ‘जिन’।

शीतलधाम मंदिर विदिशा

विदिशा के जैन श्रेष्ठि वैसे तो सैकड़ों वर्षो से शीतलनाथ भगवान के त्रय कल्याणकों से पावन इस भूमि पर तीर्थ क्षेत्र विकसित करने का स्वप्न संजोये थे, परंतु इसे मूर्तिरूप देने का कार्य आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के परम शिष्यों मुनि श्री क्षमासागर जी, मुनि श्री समतासागर जी व मुनि श्री प्रमाण सागर जी महाराज के प्रथम विदिशा आगमन एवं चातुर्मास के दौरान सन 1992 में हुआ । गुरुवर के आशीर्वाद से श्री दिगम्बर जैन शीतल बिहार न्यास ट्रस्ट का गठन होकर उदयगिरि पर 56 बीघा जमीन को क्रय किया गया । समय अपनी गति से चलता रहा सन 2002 में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज गमन करते हुये जब विदिशा पधारे तो उनके मंगल आशीर्वाद से वर्तमान शीतलधाम की 18 बीघा भूमि (हरिपुरा) श्री दिगम्बर जैन शीतल बिहार न्यास द्वारा क्रय की गई । जिस पर विदिशा से गमन करते हुऐ आचार्य श्री के पावन चरण पड़े और भूमि ऊर्जावान हो गयी, यह भूमि विदिशा नगर से लगी हुई है ।आचार्य श्री के आशीर्वाद से इस भूमि का विकाश शुरू हुआ । प्रारम्भ में यहाँ सड़क निर्माण, कुआं निर्माण एवं विशाल ज्ञान साधना केन्द्र का निर्माण किया गया |

श्रमण संस्कृति उन्नायक आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज


माता आर्यिकाश्री समयमतिजी और पिता मुनिश्री मल्लिसागरजी दोनों ही बहुत धार्मिक थे। मुनिश्री ने कक्षा नौवीं तक कन्नड़ी भाषा में शिक्षा ग्रहण की और नौ वर्ष की उम्र में ही उनका मन धर्म की ओर आकर्षित हो गया और उन्होंने उसी समय आध्यात्मिक मार्ग पर चलने का संकल्प कर लिया। उन दिनों विद्यासागरजी आचार्यश्री शांतिसागरजी महाराज के प्रवचन सुनते रहते थे। इसी प्रकार धर्म ज्ञान की प्राप्ति करके, धर्म के रास्ते पर अपने चरण बढ़ाते हुए मुनिश्री ने मात्र 22 वर्ष की उम्र में अजमेर (राजस्थान) में 30 जून, 1968 को आचार्यश्री ज्ञानसागरजी महाराज के शिष्यत्व में मुनि दीक्षा ग्रहण की। दिगंबर मुनि संत विद्यासागरजी और भी कई भाषाओं पर अपनी कमांड जमा रखी थी। उन्होंने कन्नड़ भाषा में शिक्षण ग्रहण करने के बाद भी अँग्रेजी, हिन्दी, संस्कृत, कन्नड़ और बांग्ला भाषाओं का ज्ञान अर्जित करके उन्हीं भाषाओं में लेखन कार्य किया। महाराज जी के प्रेरणा और आशीर्वाद से आज कई गौशाला, स्वाध्याय शालाएँ, औषधालय स्थापित किए गए हैं। कई जगहों पर निर्माण कार्य जारी है। आचार्यश्री पशु माँस निर्यात के विरोध में जनजागरण अभियान भी चला रहे है। साथ ही ‘सर्वोदय तीर्थ’ के नाम से अमरकंटक में एक विकलांग निःशुल्क सहायता केंद्र चल रहा है। महाराजश्री ने पशु धन बचाने, गाय को राष्ट्रीय प्राणी घोषित करने, माँस निर्यात बंद करने को लेकर अनेक उल्लेखनीय कार्य किए हैं। ऐसे ज्ञानी और सुकोमल छवि वाले आचार्यश्री विद्यासागरजी को उनके जन्मदिवस पर शत-शत नमन्।

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शीतलधाम विकास समवशरण मंदिर निर्माण

Our Status in Numbers
  • भारत के ह्रदय स्थल में स्थित विदिशा दिल्ली-मुम्बई रेल मार्ग पर बीना भोपाल के बीच मुख्य स्टेशन है एवं भोपाल से मात्र 52 किलोमीटर की दूरी पर स्तिथ है ।
  • विदिशा नगर से लगा हुआ रायसेन मुख्यमार्ग पर स्तिथ जो एन. एच. 86 का भाग है ।
  • 18 बीघा जमीन का विशाल परिसर जिसके एक ओर पश्चिम मध्यरेल्वे की रेल लाइन है ।
  • विदिशा रेल्वे स्टेशन एवं बस स्टेण्ड से मात्र 1.5 किलोमीटर दूरी पर शांत सुरम्य, एकांत विशाल परिसर ।
  • 2 बीघा जमीन पर मांगलिक भवन एवं धर्मशाला का निर्माण पूर्ण,, उद्यान, पार्किंग सुविधा सहित ।
  • एक भव्य ज्ञान साधना केन्द्र स्थापित जिसमे आठ कमरे, दालान एवं दो बड़े हाल है । मुनिचर्या की सम्पूर्ण व्यवस्था सहित ।
  • भव्य ज्ञान साधना केन्द्र से लगा हुआ बर्रो वाले बड़े बाबा आदिनाथ का जिनालय ।
  • मीठे पानी की विशाल पक्की बावड़ी, कुआँ का निर्माण ।
  • समवशरण मंदिर हेतु लगभग 2.50 लाख स्कायर फ़ीट का मैदान जहां निर्माण कार्य तीव्र गति से चल रहा है ।

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